उत्तराध्ययन सूत्र 4/13
कङ्खे गुणे जाव सरीरभेऊ जब तक शरीरभंग (मृत्यु) न हो तब तक गुणाकांक्षा रहनी चाहिये जब तक शरीर नष्ट नहीं हो जाता अर्थात् मृत्यु नहीं हो जाती, तब तक…
कङ्खे गुणे जाव सरीरभेऊ जब तक शरीरभंग (मृत्यु) न हो तब तक गुणाकांक्षा रहनी चाहिये जब तक शरीर नष्ट नहीं हो जाता अर्थात् मृत्यु नहीं हो जाती, तब तक…
।। सीहो व सद्देण न संतसेज्जा ।। सिंह के समान निर्भीक; केवल शब्दों से न डरिये सिंह कितना निर्भय होता है! हाथी की चिंघाड़ से भी वह नहीं…
।। रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं चेव ।। ।। पक्खालिज्जमाणस्स णत्थि सोही ।। रक्त-सना वस्त्र रक्त से ही धोया जाये तो वह शुद्ध नहीं होता आग को आग से नहीं बुझाया…